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कश्मीर मुद्दे को बातचीत से हल की बात करने वाले अलगाववादियों पर कार्रवाई क्यों?

कश्मीर के पुलवामा ज़िले में सीआरपीएफ़ काफिले पर हुए हमले में 40 जवानों की मौत के बाद रविवार को प्रशासन ने पांच अलगाववादी नेताओं मीरवाइज़ उमर फ़ारूक़, अब्दुल गनी बट, बिलाल लोन, हाशिम क़ुरैशी और शब्बीर शाह की सुरक्षा वापस ले ली है. इनमें से ज़्यादातर अलगाववादी नेताओं को राज्य पुलिस की सुरक्षा मिली हुई थी. पुलवामा में हमले के बाद ही आखिर यह कार्रवाई क्यों की गई, इससे कश्मीर की स्थिति पर कैसे फ़र्क पड़ेगा और साथ ही इन नेताओं की सुरक्षा पर इसका क्या असर होगा? पढ़ें जम्मू-कश्मीर पर निगाह रखने वाली वरिष्ठ पत्रकार अनुराधा भसीन का नज़रिया. पुलवामा में हमले के बाद लिए गए इस फ़ैसले से कश्मीर की ज़मीनी स्थिति में कोई बदलाव नहीं होने वाला है. चरमपंथी हमले और हुर्रियत या अलगाववादियों में बहुत फासला है. उनका किसी चरमपंथी संगठन पर कोई पकड़ है ऐसा नहीं लगता. बस दोनों की आकांक्षाओं को कुछ हद तक जोड़ कर देख सकते हैं. अलगाववादियों और चरमपंथियों का लक्ष्य अलग लेकिन हुर्रियत या अलगाववादी नेताओं और चरमपंथी संगठनों के लक्ष्य अलग अलग है. हुर्रियत बात करती है कि बातचीत के जरिये कश्मीर के मसले क